कहीं हमारे बच्चों का बचपन न खा जाय मोबाइल - .

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कहीं हमारे बच्चों का बचपन न खा जाय मोबाइल

मिस कॉल का आविष्कार करने वाला भारत अपने आविष्कार से हुआ दूर।


ब्यूरो रिपोर्ट सौरभ त्यागी जालौन

आज इस टेक्नोलॉजी के युग में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसके पास मोबाइल फोन ना हो आजकल मोबाइल फोन हमारी जरूरत ही नहीं हमारी मजबूरी बन गया है क्योंकि बगैर मोबाइल के कोई भी कार्य नहीं होता है आधार कार्ड से लेकर जन्म प्रमाण पत्र मृत्यु प्रमाण पत्र जैसे सभी कार्य मोबाइल से ही होते हैं जिसमें ओटीपी की आवश्यकता पड़ती है । बैंक से लेकर सभी कार्यों में मोबाइल नंबर की आवश्यकता होती है । इसलिए मोबाइल के साथ रिचार्ज की बढ़ती कीमतों पर भी जनता चाह कर भी सवाल खड़े नहीं कर पाती। एक समय था जब इनकमिंग फ्री होती थी ।लेकिन अब उसकी भी सीमाएं कर दी गई है यदि समय-समय पर रिचार्ज नहीं किया गया तो आपके मोबाइल में डाली हुई सिम बंद हो जाएगी और आप कोई भी कार्य करने के लिए बाध्य हो जाएंगे। सुरुआत में बैलेंस के लिए ₹10 से रिचार्ज कर मध्यम वर्ग के लोग अपनी जरूरत पूरी कर लेते थे। या मिस कॉल मार देता था कि उसे बात करने की जरूरत है और सामने वाला उसे कॉल बैक कर बात कर लेता था लेकिन अब कूपन का जमाना समाप्त होकर ऑनलाइन रिचार्ज का जमाना आ गया है जिसमें एक फोन उपभोक्ता को कम से कम एक महीने के लिए 200 से अधिक का रिचार्ज करना ही पड़ेगा तभी वह एक महीने अपने मोबाइल का उपयोग कर सकता है । टेक्नोलॉजी के दौर में मोबाइल में इतनी तेज गति पकड़ी है कि जिन्हें कीपैड चलाना भी नहीं आता है उनके हाथों में भी एंड्रॉयड फोन हैं । जानकारी के अनुसार मोबाइल का आविष्कार बड़े बिजनेसमैन कारोबारी उद्योगपतियों के लिए किया गया था जिससे उनके समय की बचत तो और उनके समय रहते कार्य पूरे हो लेकिन इस तेजी से बढ़ते हुए टेक्नोलॉजी के दौर ऐसी गति पकड़ी थी बगैर मोबाइल के कोई रह ही नहीं पाता।
और इसका असर ज्यादातर बच्चों पर पड़ रहा है
नौनिहाल अवस्था से युवावस्था के बीच के बच्चे मोबाइल फोन पर ज्यादातर रील्स देख रहे हैं और अपराध की ओर क़दम बढ़ाने लगें हैं जोकि भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है

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